एक ऐसा गुरु जिसने तराशा क्रिकेट जगत का सबसे चमचमाता हीरा
क्रिकेट को उसका भगवान देने वाले गुरु रमाकांत विट्ठल आचरेकर का निधन
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द्रौणाचार्य और पद्मश्री सम्मान से सम्मानित रमाकांत विट्ठल आचरेकर ने 2 जनवरी 2019 को अपनी अंतिम सांस ली। उनका जन्म 1932 में हुआ था। आज शायद ही क्रिकेट जगत में कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो आचरेकर के नाम से परिचित न हो। आचरेकर की शख़्सियत का अंदाजा आप इस बात से ही लगा सकते हैं कि उनकी मृत्यु पर भारत के प्रधानमंत्री उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं, तथा सिडनी में चल रहे मैच में भारतीय टीम काली पट्टी बांधकर अपना दुःख प्रकट करती है।
आचरेकर ने 1945 में क्लब क्रिकेट खेलना शुरू किया। उन्होंने अपने करियर का इकलौता फर्स्ट क्लास मैच स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के लिए हैदराबाद क्रिकेट एसोसिएशन के खिलाफ खेला था।
कोचिंग का सफर
1964 में अपने कोचिंग करियर की शुरुआत करने वाले आचरेकर आज गुरु-शिष्य परम्परा के ऐसे उद्हारण बन गए हैं जिनका नाम सदियों तक अमर रहेगा। आचरेकर के शागिर्दों में विनोद कांबली, प्रवीण आमरे, अजित आगरकर, रमेश पोवार आदि है, जिन्होंने भारत के लिए क्रिकेट खेला।साथ ही क्रिकेट जगत का सबसे नायाब हीरा सचिन रमेश तेंदुलकर को निखारने का श्रेय सिर्फ और सिर्फ उनके गुरु आचरेकर को ही जाता है।
सचिन रमाकांत के पास तेज गेंदबाज बनने के लिए आये थे, लेकिन बाद में रमाकांत के कहने पर ही सचिन ने बल्लेबाज़ी की शुरुआत की और आज बल्लेबाज़ी के अधिकतर रिकॉर्ड इस नन्हे से सचिन के नाम है।
ऐसे याद करते हैं सचिन
सचिन अक्सर कहां करते हैं की रमाकांत सर 1 रुपए का सिक्का स्टंप पे रखकर उन्हे प्रैक्टिस कराते थे। सचिन को वो सिक्का पाने के लिए खेल के पूरे सत्र में नाबाद रहना पड़ता था। जबकी सचिन के आउट होने पर वो सिक्का गेंदबाज का हो जाया करता था। सचिन ने अपने गुरु से ऐसे 13 सिक्के कमाये हैं। गुरु आचरेकर अपने शिष्यों से जितना प्रेम करते थे, उससे कंही ज्यादा वो अपने शिष्यों के प्रति सख़्त थे। रमाकांत ने कभी भी अपने शिष्यों को वैल प्लेड नहीं कहा। उनका मानना था कि तवज़्ज़ो मिलना शिष्यों को बिगाड़ने का काम करेगा। आचरेकर ने 29 साल बाद भारत रत्न मिलने पर सचिन को वैल प्लेड कहा था।
अपने गुरु के गुजर जाने के बाद सचिन ने उन्हें याद करते हुए लिखा “अब आचरेकर सर कि उपस्थिति में स्वर्ग में भी क्रिकेट समृद्ध हो जाएगा, बाकी स्टूडेंट्स कि तरह मैंने भी क्रिकेट कि एबीसीडी उन्ही सी सीखी है। मैं अपनी लाइफ में उनके योगदान को शब्दों में नहीं बता सकता पर इतना जरूर कह सकता हूं कि आज मैं जंहा भी खड़ा हूं उसकी नींव उन्होंने ही बनाई थी। आचरेकर सर ने हमें सिखाया था कि सीधे बल्ले से खेलना और सीधा स्पष्ट जीना कितना ज़रूरी है। हमारी जिन्दगी का हिस्सा बनने और अपनी कोचिंग का हिस्सा बनाने के लिए शुक्रिया। वैल प्लेड सर आप जंहा पर भी हों औरों को भी कोचिंग दें”।