राममंदिर विवाद पर जनता को भ्रम में रखने की कोशिश में संघ और बीजेपी
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आरएसएस एक बार फिर से राममंदिर निर्माण को लेकर नरम पड़ने लगा है. संघ प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को नैनिताल में कहा कि राममंदिर निर्माण का मुद्दा लोकसभा चुनाव के बाद एक बार फिर से उठाया जाएगा. चाहे सरकार किसी की भी हो. दरअसल संघ को ये आभास हो गया है कि यदि आम चुनाव में राम मंदिर मुद्दा बना तो बीजेपी को नुकसान होने का खतरा है. नवबंर, दिसंबर में साधु संतों का एक दल मोदी सरकार से ससंद में राममंदिर पर अध्यादेश लाने कि मांग कर रहा था. लेकिन सरकार ने मामले को सुप्रीम कोर्ट के बहवाले ही छोड़ना मुनासिब समझा. पांच साल खत्म होते होते मोदी सरकार से साधु संतों का अब धैर्य टुटने लगा है. राममंदिर निर्माण से जुड़े दल व संघ के नेता बीजेपी को घेरने लगे थे. लेकिन संघ और बीजेपी के चुनावी रणनीतिकारों को ये अनुमान हो गया है की चुनावी मौसम में राममंदिर का मुद्दा जोड़ पकड़ा तो नुकसान उनका ही होगा.
2014 के चुनाव से पहले बीजेपी और संघ ने बड़े ही मुखर और आक्रमक होकर राममंदिर निर्माण का मुद्दा उठाया था. लेकिन सरकार में आने के बाद बीजेपी के लिए राम मंदिर पर फैंसला लेना मुश्किल हो गया. क्योंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित होने से सरकार का सीधा टकराव देश की न्याय व्यवस्था से होता. जो मोदी सरकार के छवी को नुकसान पहुंती. जिसकी वजह से सरकार ने कोर्ट का ही रास्ता अख्तियार कर लिया. लगातार राम मंदिर निर्माण में हो रही देरी को लेकर सरकार से नाराज संतों के एक गुट को मोदी सरकार ने खुश करने के लिए मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली की विवादित स्थल के आसपास की अधिग्रहित 67 एकड़ जमीन जो उत्तर प्रदेश सरकार के अधीन है. उसे उसके मालिकों को वापस लौटा दिया जाए. जिसमें से करीब 45 एकड़ जमीन राम मंदिर न्यास की है. जिसकी कमान संघ के नेताओं के हाथ में है. दूसरी बात ये की सुप्रीम कोर्ट ने 2003 में ये कह चुका है कि जबतक विवादित जमीन का फैसला नहीं हो जाता तबतक गैर विवादित जमीन किसी को भी नहीं दी जा सकती है. जब सरकार को इस बात की जानकरी है लेकिन वो जमीन वापसी का मुद्दा कोर्ट में केवल इसलिए ले गई ताकि राम मंदिर निर्माण समर्थकों व संतों की नारजगी को कम कर सके और उनके साथ साथ देश की जनता को इस मामले पर भ्रम में रखा जा सके.
देश फिलहाल तो आस्थाओं को कुंभ में रंगकर प्रयाग के संगम में डूबकी लगा रहा है. लेकिन जैसे ही प्रयाग का कुंभ समाप्त होगा. देश की आस्था फिर से अयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद के सामने लामबंद हो जाएगी. क्योंकि साधु संतों के एक धड़े ने 21 फरवरी की तारीख तय किया उस दिन शंकराचार्य स्वरुपानंद के नेतृत्व में साधु संतों को धड़ा अयोध्या पहुंचकर राम मंदिर निर्माण के लिए शिलान्यास करेगा. कुल मिलाकर देश की जनता को ये समझना होग कि संघ और बीजेपी देश की जनता को राम मंदिर निमार्ण के मामले पर गुमराह कर रही है. बीजेपी और संघ की प्राथमिकता केवल चुनाव है. और चुनावों में राम मंदिर को लेकर जनता उनसे सवाल ना पूछे इसके लिए वनो तमाम हथकंडे अपना रहे हैं. क्योंकि राममंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद का फैसला जब भी होगा आदालत में ही होगा. लोगों को चुनाव में भ्रमित करने की कोशिश की जा रही है.